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ठीक समानांतर
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समंदर के किनारे बैठकर कवि, तुम बहुत अधिक इंतज़ार पी चुके हो। तुम हाई हो।
नींद पर
एक टहोका सा लगता है
शीतनिद्रा से जागता है दिल।
जैसे तनहाई की गरमियाँ उतरत...
2 दिन पहले
2 टिप्पणियाँ:
भाई साहब बहुत शानदार है । मेरी बधाई स्वीकारें ।
ADARNIY AALOK JI;
NAMASTAY;
EK ARSE BAAD AAPKO DEKHKAR KHUSHI HUI.
BAHUT SAAL HO GAYE MILE BINA.RAJESH JI MULAKAT KARWANIE K LIYE DHANYAWAD.
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