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तीन प्रेम कविताएं/ नीरज दइया
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1.
पारस पत्थर है प्रेम
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पारस पत्थर है प्रेम
वह नहीं मिलता उसे
जो खोजता है....
इस संसार में
है हर किसी के पास-
पारस पत्थर....
वह दिया नहीं जा ...
1 हफ़्ते पहले
3 टिप्पणियाँ:
चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया|
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया|
डूबे हुए जहाज़ पे क्या तब्सरा करें,
ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया|
हालाँकि बेज़ुबान था लेकिन अजीब था,
जो शख़्स मुझ से छीन के गोयाई ले गया|
इस वक़्त तो मैं घर से निकलने न पाऊँगा,
बस एक कमीज़ थी जो मेरा भाई ले गया|
झूठे क़सीदे लिखे गये उस की शान में,
जो मोतीयों से छीन के सच्चाई ले गया|
यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर,
क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया|
अब असद तुम्हारे लिये कुछ नहीं रहा,
गलियों के सारे संग तो सौदाई ले गया|
अब तो ख़ुद अपनी साँसें भी लगती हैं बोझ सी,
उमरों का देव सारी तवनाई ले गया|
shukriya behtreen post ke saath rubru karane ke liye mulaqaaten hoti rahengi.shukriya
rajesh ji mai ramesh bahia ji ka student hu or apse bhi pilibangan me tarun sangh prog. me mila hu i like your voice and poems .......jassal jasvinder
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